कोविड-19 महामारी के दौरान कई अस्पतालों में जाने से बचेंः डाॅ. बीकेएस संजय
देहरादून। कोरोना वायरस महामारी के बाद दुनिया आज ऐसी नहीं है जैसी पहले थी और वैसी भी नहीं होगी जैसी आज है। इसका अदांज इस बात से लगाया जा सकता है कि कोरोना महामारी के बाद दो व्यक्तियों के सम्बन्धों पर किस तरह का असर पड़ा है। कोरोना वायरस महामारी की समस्याओं एवं परिणामों को देखते हुए दोस्त और परिवार के सदस्य भी एक दूसरे को संदेह के साथ देख रहे हैं और इतने संकोची हो गये है कि हाथ और गले मिलने से कतराने लगे हैं। यह विचार संजय आॅर्थोपीडिक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेंटर, देहरादून के आॅर्थोपीडिक एवं स्पाइन सर्जन डाॅ. गौरव संजय ने व्यक्त किये। डाॅ. गौरव संजय ने बताया कि कोरोना वायरस का संक्रमण दूसरे फ्लू वायरस के संक्रमण की तुलना में यह दस गुना खतरनाक है और वास्तव में यह कोई अकेले दो लोगों की समस्या नहीं बल्कि यह एक पूरे समाज की समस्या हो रही है और ऐसा अंदाज है कि यह आगे आने वाले समय में यह समस्या और बढ़ सकती है यदि हम सबने इसके लिए सावधानियाँ नहीं बरती। 

और मरीजों की तुलना में आॅर्थोपीडिक मरीजों की समस्याऐं कुछ अलग होती है। सबसे पहले तो जब मरीज को चोट लग जाती है तो ऐसे मरीज अपने आप चल कर कहीं नहीं जाते बल्कि इनको अस्पताल में ले जाने के लिए दो-चार लोगों की जरूरत बढ़ जाती है जो उनको अस्पताल में ले जाते है। यह तो हुई एक बात।

इसके अलावा दूसरी बात बहुत जरूरी है जिसको कि हम यह बताना चाहेंगे मेरे अपने 40 के अनुभव से मैं निश्चित तौर पर यह कह सकता हूँ कि मरीज किसी हमारे जैसे अस्पताल में आने से पहले कई अस्पतालों में जा चुके होते है। 

डाॅ. संजय ने बताया कि पिछले हफ्ते ही के एक मरीज का देना चाहूँगा जिसको कि पैर की हड्डी टूटी और टूटने के बाद हमारे यहाँ आने से पहले वह तीन अस्पतालों में पहले ही जा चुका था। ऐसे में, मैं समझता हँू कि जब मरीज एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में जाते है तो इनको आने-जाने में दर्जनों लोगों से मिलना-जुलना हो जाता हैं और ऐसे में संक्रमण की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। अभी हाल ही में जो एक मरीज एम्स ऋषिकेश में इलाज के लिए भर्ती हुआ उसके साथ भी घटना कुछ इसी तरह की हुई। यह महिला जिसको एम्स की जाँचों में कोरोना पोजिटिव पाया गया जो कि लाल कुआं नैनीताल की रहने वाली थी। उसको 2 मार्च को बै्रन स्टोक हुआ जिससे वह हल्द्वानी के दो अस्पतालों में तथा इसके बाद बरेली के एक अस्ताल में भर्ती रहने के बाद 22 अप्रैल को उसको एम्स ऋषिकेश में भर्ती किया गया। जिसमें जाँच कराने पर कोरोना पोजिटिव आया। इस महिला के न केवल रिश्तेदार को बल्कि अस्पताल के स्टाॅफ में भी कोरोना पोजेटिव की पुष्टि हुई है। अब इन सब लोगों को एकांतवास में रखा जा रहा है और एकांतवास अपनेआप ही एक बहुत बड़ी समस्या है। यह कहना तो मुश्किल है कि इस महिला को किस अस्पताल से कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ पर यह तो निश्चित ही कहा जा सकता है कि ऐसे मरीज अन्जाने में कई लोगों को संक्रमित कर चुके होंगे या फिर कर देंगे। गिनीज एवं लिम्का बुक रिकार्ड होल्डर डाॅ. बी. के. एस. संजय ने बताया कि इलाज में अब उस तरह की ही आदत आम होती जा रही है या संस्कृति बनती जा रही है कि आज मरीज किसी एक डाॅक्टर की सलाह या इलाज से संतुष्ट नहीं होता बल्कि सैकेंड ओपिनीयन तो एक आदत सी बनती जा रही है और यह क्रोनिक मरीजों में तो आम बात है। लेकिन इमरजेन्सी के मरीजों में यह बात धीरे-धीरे बढ़ ही रही है। उन्होंने कहा कि, इस तरह की हम कई उदाहरण दे सकते है लेकिन कोविड 19 की महामारी को देखते हुए तथा हमारे देश की प्रचलित स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव को देखते हुए आज के समय में हमें कम से कम अस्पतालों में जाना चाहिए। यदि आप समझते है कि दूसरी या तीसरी सलाह की जरूरत हो तो जितना हो सकें उतना आप टेली मेडिसन के माध्यम या फिर दूसरे डिजीटल माध्यम जैसे कि ई-मेल, व्हाटसअप इत्यादि के माध्यम से सलाह लेने की कोशिश करें जिससे हम सब अनावश्यक संक्रमण से बच सकें क्योंकि जान है तो जहान है।